यदा ही यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
हे भारत ! जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है , तब तब ही मै अपने रूप् को रचता हूँ अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।।
परित्राणाय साधूनां विनाषाय च दुश्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
साधु पुरूशों का उद्धार करने के लिये, पाप कर्म करने वालों का विनाष करने के लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मै युग-युग में प्रकट होता हूँ ।।
भगवत गीता यह ष्लोक समय काल परीस्थिति देखते हुए एकदम सटीक बैठता है,जिस समय मोदी जी ने देष की केन्द्र राजनीत में े प्रवेष किया।
याद करें पौन दषक पहले का काल खंड देष में भ्रश्टाचार का बोलबाला था, देष की सीमायों पर प्रहरी टूटेे मनोबल से तैनात थे दूसरी ओर अलगावादी एवं देष विरोधी तत्व देष की प्रभुसत्ता को चुनोति दे रहे थे। सत्ताके षिखर पर मध्यकालीन युग की याद ताजा हो रही थी जहाॅं सत्ता की डोर रानिवास के हाथ में रहती थी । राज्य सरकारें भी मोहम्मद तुगलक के वंषजों की थी जिनको बिना किये कराये इतिहास पुरूश बनन ेकी चाह थी । देष के इतिहास मान्यताओं परम्पराओं की गलत व्याख्या की जा रही थी। देष के राश्टीय गौरव के प्रतिकों का निरन्तर हा्रस रणनीति के तहत या अज्ञानत के कारण हो रहा था। समाज में भी जस राजा तस प्रजा जैसा हाल था इसलिए देष में भ्रश्टाचारियों,कालाबाजारियों का बोलबाल हो रहा था।सनातन, सात्विक ईमानदार, एव नैतिकता की वकालत करने वाले उपहास के पात्र बन रहे थे। ऐसे समय में देष की केन्द्र राजनीति में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोशित हुये।पहले तो देषवासियों ने विकल्प कें रूप् में देखा लेकिन धीरे धीरे भारतीय जनमानस को अहसास हो गया है भारतीय राजनीति के प्रति आमजन में निराषा है नेतृत्व के प्रति आक्रोष उसको दूर करने में नरेन्द मोदी सफल हुए हैं।और यह विष्वाष बढ़ता ही जा रहा है।
प््रधानमंत्री मोदी के साथ अजीब संजोग जुड़ा है।उनकाा जन्म विष्चकर्मा जयंती के दिन हुआ है। जोकि नवनिर्माण के देवता माने जाते है। मोदी जी ने अपने जन्म दिवस की सार्थकता सिद्व की दी है।आज वह देष के करोड़ों लोगों की प्ररेणा स़्त्रो है वह जन विष्वास के प्रतिक है।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।
हे भारत ! जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है , तब तब ही मै अपने रूप् को रचता हूँ अर्थात् साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ ।।
परित्राणाय साधूनां विनाषाय च दुश्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
साधु पुरूशों का उद्धार करने के लिये, पाप कर्म करने वालों का विनाष करने के लिये और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिये मै युग-युग में प्रकट होता हूँ ।।
भगवत गीता यह ष्लोक समय काल परीस्थिति देखते हुए एकदम सटीक बैठता है,जिस समय मोदी जी ने देष की केन्द्र राजनीत में े प्रवेष किया।
याद करें पौन दषक पहले का काल खंड देष में भ्रश्टाचार का बोलबाला था, देष की सीमायों पर प्रहरी टूटेे मनोबल से तैनात थे दूसरी ओर अलगावादी एवं देष विरोधी तत्व देष की प्रभुसत्ता को चुनोति दे रहे थे। सत्ताके षिखर पर मध्यकालीन युग की याद ताजा हो रही थी जहाॅं सत्ता की डोर रानिवास के हाथ में रहती थी । राज्य सरकारें भी मोहम्मद तुगलक के वंषजों की थी जिनको बिना किये कराये इतिहास पुरूश बनन ेकी चाह थी । देष के इतिहास मान्यताओं परम्पराओं की गलत व्याख्या की जा रही थी। देष के राश्टीय गौरव के प्रतिकों का निरन्तर हा्रस रणनीति के तहत या अज्ञानत के कारण हो रहा था। समाज में भी जस राजा तस प्रजा जैसा हाल था इसलिए देष में भ्रश्टाचारियों,कालाबाजारियों का बोलबाल हो रहा था।सनातन, सात्विक ईमानदार, एव नैतिकता की वकालत करने वाले उपहास के पात्र बन रहे थे। ऐसे समय में देष की केन्द्र राजनीति में भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार घोशित हुये।पहले तो देषवासियों ने विकल्प कें रूप् में देखा लेकिन धीरे धीरे भारतीय जनमानस को अहसास हो गया है भारतीय राजनीति के प्रति आमजन में निराषा है नेतृत्व के प्रति आक्रोष उसको दूर करने में नरेन्द मोदी सफल हुए हैं।और यह विष्वाष बढ़ता ही जा रहा है।
प््रधानमंत्री मोदी के साथ अजीब संजोग जुड़ा है।उनकाा जन्म विष्चकर्मा जयंती के दिन हुआ है। जोकि नवनिर्माण के देवता माने जाते है। मोदी जी ने अपने जन्म दिवस की सार्थकता सिद्व की दी है।आज वह देष के करोड़ों लोगों की प्ररेणा स़्त्रो है वह जन विष्वास के प्रतिक है।