भारत की अर्थव्यवस्था मे बुनियादी संकट


दुनिया में एक ऐसा देश था, जहां सब के सब चोर थे, रात होते ही जनता अपने घरो से निकलती और चोरी करती, आलम ये था कि सभी चोरो के खुद अपने घर लुटे जाते थे | इस तरह समता और समानता का भाव था क्योंकि पहला दूसरे से चुरा रहा था, दूसरा तीसरे से, तीसरा चौथे से | जो लोग चोरी से अमीर बन गए उन्होंने कुछ गरीबों को चोरी करने के लिए नौकरी पे रख लिया और खुद अपने धन की रक्षा करने लगे, कुछ दिनों बाद अमीर और अमीर होते गए और जो गरीब वो बदतर, पर चोरी बंद न हो सकती थी वरना अमीर, गरीब हो जाते इस तरह जिस देश में केवल चोर ही चोर थे जो धीरे धीरे दो वर्ग, “अमीर” और “गरीब” बन गए और जो ईमानदार था वो भूख से मर गया क्योंकि उसने कुछ चुराया नहीं, इमान न बेचा| यह कहानी इटली के लेखक इतालो काल्विनो ने कहानी संग्रह ‘Numbers in the Dark’ की कहानी ‘The Black Sheep’  में लिखी है जिसका हिंदी अनुवाद चंदन पांडेय ने किया। .......कहानी का सन्दर्भ लेना बेहद जरूरी था, कमोबेश ऐसी ही कुछ तस्वीर मेने हाल ही देखी है,

क्या आपने  ये कभी महसूस नहीं किया कि भारतीय अर्थव्ययवस्था अब तक के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है ?........... शायद आप मेरा धर्म हिन्दू मुसलमान, मेरा लफड़ा मंदिर मस्जिद, मेरा झगडा चीन पाकिस्तान और मेरा कपडा टोपी गमछा तक ही सिमित रहे,,इस टीवी झूठ की दुनिया के आगे भी दुनिया है “मेरा देश सशक्त मजबूत”| पर ये क्या, जिस देश में बेरोजगारी की दर 45 साल के रिकॉर्ड स्तर पर हो वो सशक्त कैसा ? जिस देश में 1.5 लाख करोड़ का, अमीरों का कर्जा माफ़ हो और गरीबो के घर खेत नीलम हो वो मजबूत कैसा?........

अब आप भला ये क्यों सोचने लगे कि बैंकों में जमा राशि देश के नागरिकों की असल बचत पूंजी है | बैंकों का नुकसान अप्रत्यक्ष रूप से हमारा नुकसान ही है, आज ही का वो ऐतिहासिक दिन था जब 51 वर्ष पूर्व तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व इंदिरा गाँधी ने 14 बड़े बैंक का राष्ट्रीयकरण कर दिया और उसे आम जनता की पहुँच तक बनाया, कुछ नाम तो याद होंगे आपको विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी, सुब्रत सहारा, विक्रम कोठारी ऐसे कई मिल के लगभग 2450 अमीर घराने, जिनका क़र्ज़ माफ़ हुआ, क़र्ज़ माफ़ी के पीछे कारण था हमारा फिनांशियल सेक्टर, बैड लोन्स (वैसे कर्ज जिनकी वसूली की संभावना न रहे) और क्रोनी लेंडिंग (जब कर्ज योग्यता के बजाय संबंधों के आधार पर दिए जाते हों) है , स्व इंदिरा गाँधी ने इन जैसो के लिए तो नहीं किया बैंक का राष्ट्रीयकरण, फिर गुनाहगार कौन?, कौन है जो पर्दे के पीछे खेल रहा है? कौन है जिसे सरकारी जमाता होने का सुख मिला?

बेशक वो ही जो चुनाव में चंदा देते है, टेंडर में भागीदारी देते है, काम के बदले हिस्सा पहुचाते है, कालेधन को बाजार में घुमाते है, अवैध संपतिया बनाते है, उनके अपने हमदर्द--कारोबारी मित्र,,हम तो निरीह अभागी “गाय” जनता केवल मन कसोट के रह जायेंगे |

अर्थव्यवस्था को नापने के दो प्राथमिक घटक हैं,“आर्थिक विकास” और “रोजगार” , दोनों के बीच एक स्पष्ट संबंध है, अर्थशास्त्री “आर्थर ओकुन” ने ओकुन का नियम प्रतिपादित किया कि-“एक वर्ष में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 4% की दर बढ़ोतरी, बेरोजगारी की दर में 1% की कमी उत्पन्न करती है” । अब भारत की आर्थिक प्रगति पे भी बात कर लेते है, जीडीपी 12 साल के न्यूनतम स्तर पर है वर्ष 2019-20 में जीडीपी विकास दर 4.2% रह गई, 2019-20 की आखिरी तिमाही यानी जनवरी से मार्च 2020 में जीडीपी की रफ्तार कम होकर सिर्फ 3.1% पर आ गई, घोर करे कोरोना से पहले का हाल है ये, वो भी तब, जब बेस इयर 2017-18, यदि इसका आंकलन 2011-12 से लिया जावे तो लगभग 1.5% और कम कर देना चाहिए, पूरी गणना विधि ही बदल दी नई सरकार ने, आज उसे आधार बना रहे है जिसकी ग्रोथ रेट सबसे कम थी ताकि बेहोश जनता को लगे कि साहब ने तो काफी विकास किया है, पर हाल बुरा तो अप्रेल से जून 2020 में हो गया जब विकास दर शुन्य, जी हाँ पूर्ण शून्य से नीचे नकारात्मक रही, मतलब छिछले में भी छिछला | अब आंकलन ये है कि आर्थिक विकास की दर 2020-21 में केवल 4.5% रहेगी कोरोना के कारण, भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति समिति की बैठक में जीडीपी के नकारात्मक रहने का अनुमान जताया है, सो अब बचा खुचा ठीकरा कोरोना पर फूट गया, बेचारा कोरोना चीखता रहा उसकी कोई गलती नहीं उसे व्यर्थ ही बलि का बकरा बनाया जा रहा है, पर किसी ने एक न सुनी, नाम में ही “रोना” लिखा जो है |

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 की रिपोर्ट को आधार मानें तो अर्थव्यवस्था में 52% स्वरोजगार, 23% नौकरीपेशा, 25% मजदूर वर्ग है हाल कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की बड़ी आबादी गांव लौट चूकी है जो अब असमंजस में है और कृषि पर ही रोज़गार और आजीविका आश्रित है | भारत की अर्थव्यवस्था मे दो ही बुनियादी संकट है, एक प्रवासी मजदूरों का, दूसरा छोटे और मझले उद्योगों पर उत्तरजीविता का | आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) 2017-18 के अनुसार, भारत की श्रम शक्ति का 6.1%, और श्रम बल में 17.8% युवा (15-29 वर्ष) बेरोजगार हैं, पीएलएफएस 2018-19 की रिपोर्ट में भारत में बेरोजगारी की दर 5.8 फीसदी थी उसमे भी 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के शिक्षित (माध्यमिक और उससे ऊपर के उच्चतम स्तर वाले) व्यक्तियों के लिए, भारत में बेरोजगारी दर 11.0 प्रतिशत थी, ये दो साल पुराना आंकड़ा है अब तो हालात और गंभीर है, 135 करोड़ के देश में औसतन 15 करोड़ बेरोजगार,,फिर कैसे हम 5 ट्रिलियन इकोनोमी का सपना देख सकते है,

खैर छोडो आपको इससे क्या फर्क पड़ने वाला है वर्ष 2012-14 में 1.25 करोड़ रोज़गार पैदा करने वाला देश पिछले 2 साल से केवल 25 लाख रोज़गार उत्पन्न कर रहा है,,इसका सीधा अर्थ है अर्थव्यवस्था गर्त में जा रही है, युवा बेरोजगार तो पूर्ण हताश है किससे कहे अपना दर्द ? जिन परीक्षाओ को देने वो रेल की छतो पर लटक के गया उनमे पास हो जाने पर भी नियुक्तिया नहीं दी जा रही है, कौन उठाएगा आवाज,,पुरे मिडिया में रोजगार, गरीबी, भूख जैसे मुद्दे गौण हो चुके है अब हम टीवी की दुनिया में किम जोंग का बाथरूम देख रहे है, अमिताभ बच्चन के कोरोना होने बाद कितनी बार शोचालय गए ये देख रहे है, जो बीमार होकर मर रहे है उनका आंकड़ा तो इतिहास में दर्ज हो ही जायेगा पर जो बेरोजगारी से मर रहे है वो वीरान है, बेबस है, दुनिया के कोलाहल में गुमनाम, मेरी नज़र में वो है “एक मुर्दा आदमी” | मशहूर शायर सलीम सिद्दीक़ी का एक शेर है

अब ज़मीनों को बिछाए कि फ़लक को ओढ़े
मुफलिसी तो भरी बरसात में बे-घर हुई है |

( विष्णु पहाड़िया सनवाड़ )