बालेंदु गोस्वामी
हिन्दू अथवा सनातन धर्म के ग्रन्थों में वर्णित दर्शन के अनुसार मनुष्य का जन्म ही वस्तुतः उसका पतन है और समस्त धार्मिक कर्म मोक्ष की कामना से इसीलिये किये जाते हैं कि फिर कभी जन्म न हो और मुक्ति मिल जाए!
अब बताइये जिस धर्म के अनुसार जीवन का आगाज ही पतन के अफ़सोस और उसकी पुनरावृत्ति न करने के संकल्पों और प्रयासों के साथ हो, जीवन के उस दर्शन को अपना कर भला आप कैसे प्रसन्न रह सकते हैं?
धर्म तो आपको ग्लानि में रहना सिखाता है, आपको उन पापों का दोषी मानता है जो न तो आपने कभी किये और न ही जिन पर कभी आपका कोई वश था!
यदि सच में प्रसन्न और सुखी रहना चाहते हो तो धर्म के द्वारा बताई गई मरने के बाद वाली मुक्ति नहीं बल्कि जीते जी धर्म की काल्पनिक बेड़ियों से मुक्त हो और सुखी हो जाओ!
नहीं तो सारी जिन्दगी "पापोहम" करते करते हुए घन्टी हिलाओगे और मर जाओगे!
( लेखक जर्मनी में रह रहे संत से टर्न हुए ग्रहस्त हैं )