बनारस में प्रधानमंत्री पर चप्पल और संसद में सांसद से जवान ने पूछा, किसलिये आये हैं?
संजय कुमार सिंह 

नरेन्द्र मोदी सरकार तीसरे कार्यकाल का जश्न मना रही है। कल आपने यहां पढ़ा कि चुनाव परिणाम के बाद नरेन्द्र मोदी बनारस गये थे और अपने मतदाताओं का शुक्रिया अदा कर आये हैं। अखबारों ने पुल ढहने की खबर छोड़कर नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा के पुल बाधे थे। आज उससे आगे की कहानी। नीट का मामला साफ होने से पहले एनईटी की परीक्षा रद्द कर दिये जाने का मामला है। एक के बाद एक - दो बड़ी परीक्षाओं का यह हाल है तो नौकरी की परीक्षाओं का क्या होना है जो पहले से बदनाम है। फिर भी सरकार ने खरीफ की 14 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने और किसानों को आर्थिक सहायता देने की घोषणा का प्रचार कर अपनी स्थिति मजबूत बनाये रखने की कोशिश की है। भले, रेल दुर्घटना के जो कारण आज बताये गये हैं उनसे साफ है कि सब कुछ राम भरोसे है। संभवतः सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है (और इसीलिए पहले रेल दुर्घटनाओं की जांच सीबीआई से कराई गई)। नियम कानून के पालन के मामले में सरकार बहुत कमजोर है। ‘कवच’ था ही नहीं, का मतलब है कि सरकार जो प्रचार करती है वह काम नहीं करती। मनरेगा की आलोचना की थी वह चलती रही।    

अखबारों में इन दिनों ज्यादातर सरकार का प्रचार होता है और विपक्ष की मांग को जगह नहीं के बराबर मिलती है। इसी क्रम में अमर उजाला की आज की एक खबर के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने कहा है, भारत फिर बनेगा ज्ञान का केंद्र, भावी पीढ़ियां करेंगी विश्व का नेतृत्व। मौजूदा पीढ़ी के बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का शीर्षक है, “12वीं पास मंत्री ‘बेटी बचाओ’ नहीं लिख पाईं”। खबर इस प्रकार है, केंद्रीय महिला व बाल विकास राज्य मंत्री, सावित्री ठाकुर एक राजकीय स्कूल में आयोजत कार्य क्रम में हिन्दी में चार शब्द सही ठंग से नहीं लिख पाई और बहुत ही अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ा। कहने की जरूरत नहीं है कि टाइम्स ऑफ इंडिया में अमर उजाला की प्रचार वाली खबर नहीं है और अमर उजाला में पहले पन्ने पर मंत्री की अयोग्यता बताने वलाली खबर नहीं है। 

यह सब 10 साल से चल रहा है और इसीलिये ये हाल हुआ है कि प्रधानमंत्री की गाड़ी पर किसी ने चप्पल फेंक दी। कहने की जरूरत नहीं है कि इस सरकार ने लोकप्रियता पाने के लिए कोई काम नहीं किया है और जो किया है उससे नुकसान ज्यादा हुआ है पर आलोचना नहीं के बराबर हुई है। इससे स्थिति यह आ गई है  लोगों का एक वर्ग इतना नाराज है कि प्रधानमंत्री पर चप्पल फेंककर गुस्सा निकाल रहा है। यह सही तरीका नहीं है पर इसकी जरूरत पड़ी क्योंकि अखबारों में उनकी आलोचना नहीं होती है। ऐसे में एक्जिट पोल का अंदाजा गलत आयेगा उसका नुकसान पूंजी बाजार में लोगों को होगा। ईवीएम पर शक बढ़ेगा और प्रधानमंत्री इसे कम करने की बजाय ईवीएम जिन्दा है कि मर गया – जैसे सवाल पूछकर उसके प्रति अपना अंध समर्थन बतायेंगे जबकि सत्ता में आने से पहले भाजपा ईवीएम के खिलाफ थी।